Friday, April 27, 2018

आसाराम केस: पीड़िता की खौफनाक दास्तान सुनकर खड़े हो जाएंगे रौंगटे

                   राजस्थान अदालत ने 2013 में जोधपुर के पास अपने आश्रम में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से एक किशोर महिला भक्त से बलात्कार के लिए आत्मनिर्भर देवता आसाराम को जीवन कारावास सौंप दिया था।

 विशेष अदालत ने कड़े सुरक्षा के बीच जेल में दो अन्य लोगों को 20 साल की सजा सुनाई, दो को छोड़ दिया अन्य आरोपी (पीटीआई फाइल) अपने शिष्य की बेटी और पोती के समान लड़की के साथ आसाराम की साजिश किसी बॉलीवुड के खलनायक जैसी ही थी. पुलिस जांच रिपोर्ट में यह हैरान करने वाला खुलासा हुआ है. यह रिपोर्ट बताती है कि आसाराम कोई संत नहीं बल्कि साजिशों का झांसाराम है. आज हम आपको बताएंगे साधु के भेष में बलात्कारी आसाराम की घिनौनी करतूत का पूरा प्लान.

   पीड़िता पर 2012 में ही पड़ गई थी आसाराम की निगाह 

 मई-जून 2012 में आसाराम ने पहली बार हरिद्वार में पीड़ित नाबालिग लड़की को देखा था. उस समय वह आसाराम के छिंदवाड़ा आश्रम की ओर से चलाए जा रहे स्कूल में पढ़ती थी और आसाराम के हरिद्वार में आयोजित पूजा कार्यक्रम में हिस्सा लेने स्कूल की ओर से ही हरिद्वार गई हुई थी. तब पीड़िता की उम्र 15 साल थी. हरिद्वार में पूजा कार्यक्रम में ही पहली बार आसाराम की बुरी नजर पीड़िता पर गई थी. उस वक्त हरिद्वार के आश्रम की इंचार्ज आसाराम की पक्की राजदार शिल्पी उर्फ संचिता गुप्ता थी. पीड़िता ने कोर्ट में दिए बयान में कहा है कि 2012 में आसाराम ने आशीर्वाद देने के नाम पर उसे गलत जगह छुआ था, लेकिन तब उसने सोचा कि एक दादा की उम्र के उसके 'भगवान' की कोई गलत भावना नहीं रही होगी.



   छिंदवाड़ा में आसाराम ने रची साजिश 

 आसाराम की गंदी नजर पीड़िता पर पड़ चुकी थी और मानसिक रूप से बीमार आसाराम जनवरी 2013 में छिंदवाड़ा जा पहुंचा. गुरुकुल के छात्रों को शिक्षित और संस्कारी करने के कार्यक्रम के दौरान उसने एकबार फिर उस लड़की को देखा. तब उसने अपने गुनाहों के राजदार छिदवाड़ा आश्रम के निदेशक शरतचंद्र को कहा कि शिल्पी को छिंदवाड़ा लेकर आते हैं.

   पीड़िता को फंसाने के लिए शिल्पी का छिंदवाड़ा ट्रांसफर

 बिना किसी वजह के संचिता गुप्ता उर्फ शिल्पी का ट्रांसफर छिंदवाड़ा के आश्रम में कर दिया गया. 'आजतक' के पास शिल्पी का वो ट्रांसफर लेटर है, जिसे सबूत के तौर पर पुलिस ने कोर्ट में रखा है. इस लेटर में लिखा है कि संचिता गुप्ता, पुत्री महेंद्र गुप्ता का ट्रांसफर छिंदवाड़ा के गुरुकुल के संचालिका के पद पर किया जाता है. एक अप्रैल 2013 को शरदचंद्र छिंदवाड़ा गुरुकुल का निदेशक बन गया और संचिता गुप्ता उर्फ शिल्पी संचालिका बनाई जाती है.

 पीड़िता को दिखाया भूत-प्रेत का डर

 दरअसल, शिल्पी को छिंदवाड़ा भेजने का मकसद नाबालिग लड़की को आसाराम के जाल में फंसाना था. छिंदवाड़ा आश्रम पहुंचकर शिल्पी ज्यादा से ज्यादा समय पीड़िता के साथ बिताने लगी. एक दिन पीड़िता के पेट में दर्द उठा तो शिल्पी ने दवा दिलवाने के बजाय कह दिया कि उस पर भूत-प्रेत का साया है. इसे शिल्पी और शरतचंद्र ने आसाराम के शिकार के लिए मौके के रूप में लिया. शरतचंद्र पर जिम्मेदारी थी कि वो पीड़िता के मां-बाप को समझाए कि वे पीड़िता को आसाराम के पास ले जाएं, जबकि शिल्पी पर जिम्मेदारी थी कि वो पीड़िता को आसाराम के पास जाने के लिए समझाए. इस पूरे ऑपरेशन के लिए आसाराम ने अपने एक साधक ज्ञान सिंह बधोड़िया के नाम पर नया सिम कार्ड भी लिया था. 

 आश्रम हेड बनना चाहती थी महत्वाकांक्षी शिल्पी

 आसाराम के काले कारनामों में उसका साथ देने वाली और उसके लिए लड़कियों को तैयार करने के पीछे शिल्पी की बहुत बड़ी महत्वाकांक्षा थी. काफी कम उम्र में ही वह आसाराम की विश्वासपात्र बन चुकी थी और धीरे-धीरे आसाराम के 'दुष्कर्मों' की राजदार बनती चली गई. दरअसल शिल्पी बेहद महत्वाकांक्षी लड़की थी और आसाराम ने उसे लालच दिया था कि वह उसे आश्रम की हेड बना देगा. वहीं शरतचंद्र, आसाराम के पैसे के लेन-देन में राजदार था और आसाराम की काली कमाई को सफेद करता था.

 इस तरह आसाराम से इलाज के लिए तैयार हुई लड़की 

 पीड़िता ने बताया कि वह शुरू से ही बाबा की नीयत से वाकिफ हो गई थी और आसाराम से इलाज नहीं करवाना चाहती थी. लेकिन शिल्पी ने फिर आखिरी दांव खेला और लड़की के मां-बाप से संपर्क किया. उन्हें बताया कि शिल्पी पर भूतप्रेत का साया है. एक बार बाबा को दिखा दें तो ठीक हो सकती है. घरवालों के मान जाने के बाद लड़की भी मजबूरन बाबा से इलाज कराने को तैयार हो गई. फिर आसाराम के एक अन्य भक्त शिवा को जिम्मेदारी दी गई कि वो जोधपुर में बाबा का प्रवचन रखवाए, ताकि उसी प्रवचन के दौरान लड़की को जोधपुर बुलाया जा सके. शिवा ने 9, 10 और 11 अगस्त को जोधपुर में बाबा के प्रवचन की तारीख तय कर दी.

  लड़की माता-पिता के साथ पहुंची फार्म हाउस 

 उधर, 13 अगस्त को ही लड़की शिल्पी के साथ छिंदवाड़ा से जोधपुर पहुंचती है. 13 अगस्त की रात लड़की अपने मां-बाप के साथ ही पाल आश्रम में बिताती है. इसके बाद 14 अगस्त की सुबह शिवा लड़की और उसके मां- बाप को लेकर आसाराम के एकांतवास वाली कुटिया यानी फार्म हाउस पहुंचता है. फार्म हाउस पर आसाराम सभी को प्रवचन सुनाता है, आशीर्वाद देता है. फिर तय होता है कि आसाराम 15 अगस्त को लड़की का इलाज करेगा.

 एकांत में इलाज करने का फरमान

 15 अगस्त को लड़की दोपहर के वक्त बाबा के सामने हाजिर की जाती है. कुछ देर बाबा लड़की के मां-बाप से बात करते हैं. फिर हुक्म सुनाता है कि लड़की का इलाज वह अकेले कमरे में करेगा. क्योंकि इलाज के लिए एकांत जरूरी है. बाबा का आदेश सुनते ही लड़की के मां-बाप उस कमरे से कुछ दूर कर दिए जाते हैं. लड़की कमरे के अंदर जाती है और दरवाजा बंद हो जाता है.

 लड़की को सम्मोहित कर आसाराम ने मिटाई हवस

 अब बंद कमरे में बस आसाराम और लड़की थी. लड़की को बाबा ने पहले सम्मोहित किया और फिर महीनों पुरानी हवस मिटानी शुरू कर दी. पर शायद बाबा के सम्मोहन का पूरा असर लड़की पर नहीं हुआ था. लिहाज़ा वो बाबा की अश्लील हरकत का विरोध करने लगी. तब बाबा ने उसे धमकी दी कि अगर उसने जुबान खोली तो छिंदवाड़ा गुरुकुल में पढ़ रहे उसके भाई और मां-बाप को जान से मार दिया जाएगा. धमकी से डरकर लड़की खामोश हो गई.

  पीड़िता ने घर जाकर माता-पिता को सुनाई आपबीती 

 इस बीच शाहजहांपुर पहुंच कर लड़की में हिम्मत आई और उसने अपनी मां को सारी बात बता दी. मां ने बाप को बताई और फिर पूरा परिवार 19 अगस्त को बाबा से मिलने दिल्ली पहुंच गया. बाबा ने मिलने से मना कर दिया. लिहाज़ा 20 अगस्त को लड़की ने दिल्ली के कमला मार्केट थाने में बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. और इस तरह ऑपरेशन 15 अगस्त सबके सामने आ गया. जिसकी वजह से बाबा का असली चेहरा दुनिया के सामने आया. और अदालत ने उसी काली करतूत के लिए आसाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई.

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